This poem is written by me long back... I am publishing it just for the sake of sharing it with you all...
I hope you'll like it....
एक विश्वास से उसने वो रास्ता अपनाया...
तब जाके उसने था अपना आसमान पाया....
कठानईयों पे .....कभी ना वोह रूठा, ना वोह रोया और ना वोह चिल्लाया....
ये सब था उसकी किस्मत में या फ़िर किया था उसने कुछ अलग
यह उसके मानस पटल में कैसी लौ रही थी सुलग
जो देती थी शक्ति उसे हर नाकामयाबी से लड़ने की ...
जो देती थी शक्ति उसे हर पहर आगे बढ़ने की....
त्रिष्णाओ ने पुरजोर कोशिशों से उसे अपनी ओर खीचा
पर उसने किया हर पल उस 'लौ' का पीछा
जब जब चुनौतियों ने दी थी उसे दस्तक...
हाँ वोह भी उसकी होंसलों से हुई नतमस्तक..
उसने हर हार को अपनी निरंतरता से हराया
और इस तरह था उसने अपना आसमान पाया...
उसमें और मुझमें यह था अन्तर...
उसने हर संघर्ष को हसते हुए अपनाया....
तब जाके था उसने अपना आसमान पाया ..
ना वो रूठा, ना वो रोया और नाही वोह चिलाया.....
रूचि शर्मा
I hope you'll like it....
एक विश्वास से उसने वो रास्ता अपनाया...
तब जाके उसने था अपना आसमान पाया....
कठानईयों पे .....कभी ना वोह रूठा, ना वोह रोया और ना वोह चिल्लाया....
ये सब था उसकी किस्मत में या फ़िर किया था उसने कुछ अलग
यह उसके मानस पटल में कैसी लौ रही थी सुलग
जो देती थी शक्ति उसे हर नाकामयाबी से लड़ने की ...
जो देती थी शक्ति उसे हर पहर आगे बढ़ने की....
त्रिष्णाओ ने पुरजोर कोशिशों से उसे अपनी ओर खीचा
पर उसने किया हर पल उस 'लौ' का पीछा
जब जब चुनौतियों ने दी थी उसे दस्तक...
हाँ वोह भी उसकी होंसलों से हुई नतमस्तक..
उसने हर हार को अपनी निरंतरता से हराया
और इस तरह था उसने अपना आसमान पाया...
उसमें और मुझमें यह था अन्तर...
उसने हर संघर्ष को हसते हुए अपनाया....
तब जाके था उसने अपना आसमान पाया ..
ना वो रूठा, ना वो रोया और नाही वोह चिलाया.....
रूचि शर्मा
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