Thursday, October 04, 2018

रेत का महल..

एक रेत के ढेर पर मेरे सपनो का महल...खड़ा है और जूझ रहा है इन सर्द हवाओं से !!!जो किसी भी दिशा से आके उसे चरमरा जाती हैं ...पर फिर भी किसी आस पे वो आज भी अनमना सा खड़ा है….हर झोकें से कहता है मत छेडो ...यह सोच के कि मैं तहसनहस हो जाऊंगा ….तुम से लड़ते हुए कभी इस रेत में खो जाऊंगा
जरा देखो मुझे अन्दर गौर सेआस का फौलाद है ….उसे हिला पाना …. तुम्हारी क्या औकात हैफिर वो बोला …… हवाओं ….यह जो रोज़ तुम मेरे दीप भुजा जाती हो
मत इतराओ देखो मेरी आशायिएं हर रोज़ उसी मुस्कान से
मेरे हर कोने को रोशन करती हैं ….मेरे आँगन से हो के गुज़रती हो तुम रोज़
फिर भी नही समझ पायी बुनियाद मेरी ….मेरा विश्वास और आत्म्स्मान हैं ….हाँ मानता हूँ जिस दिन तुमने यह बुनियाद हिला दी
मैं वही खतम होजाऊंगाऔर ये वही दिन होगा जब मैं थक के इसी रेत में सो जाऊंगा …..हाँ यही वो दिन होगा जब मैं थक के सो जाऊंगा ....

No comments: